मुख्य बिंदु: एक राष्ट्र एक चुनाव क्या है, पक्ष और विपक्ष, उद्देश्य, यूपीएससी, आईएएस, परीक्षा नोट्स, विकिपीडिया, निबंध। (what is One Nation One Election in Hindi, ONOE Pros and Cons, Aim, UPSC, IAS, Exam notes, Wikipedia, Essay)
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election News In Hindi): “एक देश एक चुनाव” का मतलब है पूरे भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना है। इस विचार का उद्देश्य देश के संसाधनों पर चुनावी बोझ तथा खर्च को कम करना। क्योंकि निरंतर चुनाव का असर शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर भी होता है।
इसके लिए भारत सरकार (मोदी गवर्नमेंट ) ने एक कमेटी का गठन किया था। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व वाली इस समिति द्वारा 24 मार्च 2024 को प्रस्तुत हालिया रिपोर्ट में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संविधान में दो चरणों में संशोधन करने की सिफारिश की गई है।
पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को सिंक्रनाइज़ करना शामिल है। जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनावों को राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के साथ संरेखित करना शामिल है। समिति त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव जैसी राजनीतिक अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए तंत्र का भी प्रस्ताव करती है।
वन नेशन वन इलेक्शन क्या है (ONOE History, Aim, Pros & Cons, Essay In Hindi)
2014 में भारत में मोदी सरकार बनने के बाद से ही देश में एक के बाद एक कई सुधारों की चर्चा हो रही है। इन्हीं सुधारों में से एक है चुनाव सुधार। इसमें एक विचार जो सबसे अधिक विचारणीय है वह है एक देश, एक चुनाव यानी कि वन नेशन वन इलेक्शन। केंद्र सरकार द्वारा जब ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (ONOE) की संभावना तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने के बाद से, इस मुद्दे पर राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है।
यहां यह बताना दिलचस्प है कि 1967 तक राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव होते रहे। हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं, जिसके बाद 1970 में लोकसभा भंग हो गई। इससे राज्य और देश के चुनावी कार्यक्रमों में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा।
वन नेशन-वन इलेक्शन का क्या मतलब है: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लोकसभा (भारतीय संसद का निचला सदन) और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए भारत सरकार द्वारा विचाराधीन एक प्रस्ताव है। उसका इरादा इन चुनावों को एक साथ, एक ही दिन या एक निश्चित समय सीमा के भीतर कराने का है।
एक देश एक चुनाव से क्या होगा: इससे चुनावों में होने वाले खर्च में भारी कमी होगी, समय की बचत होगी और सरकारी कर्मचारियों को बार-बार चुनावी ट्यूटी से भी छुटकारा मिलेगा।
“एक देश एक चुनाव” हाई लेवल कमेटी
भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और सभी राज्यों के स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे की जांच के लिए सितंबर 2023 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमेटी (HLC) का गठन किया गया था। इसने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर सभी राजनीतिक दलों, विधि आयोग और अन्य लोगों से सुझाव मांगे थे।
समिति में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद अध्यक्ष है व इनके अलावा गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अहीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हैं।
अंततः, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” पर उच्च स्तरीय समिति ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।
‘एक देश एक चुनाव’ का इतिहास (History of ‘One Nation One Election’)
1951-52 से 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अधिकतर एक साथ ही होते रहे। और इसके बाद यह सिलसिला टूट गया और अब लगभग हर साल चुनाव होते हैं और यहां तक कि एक साल के भीतर अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। परिणामस्वरूप सरकार और राजनीतिक पार्टियों द्वारा भारी व्यय, करना पड़ता है। साथ ही ऐसे चुनावों में तैनात सुरक्षा बलों और अन्य चुनाव अधिकारियों को उनके मूल कर्तव्यों से परे काफी लंबी अवधि के लिए तैनात करना, आदर्श आचार संहिता को लंबे समय तक लागू करना आदि ऐसे प्रमुख कारण है जिनसे देश का विकास और अन्य कार्य बाधित होता है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव का लक्ष्य (One Nation, One Election aim)
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं (What Are The Benefits And Challenges Of ‘One Nation, One Election’?)
पहले चार आम चुनाव चक्रों 1952, 1957, 1962 और 1967 के दौरान, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। हालाँकि, सात मौकों पर लोकसभा के समय से पहले भंग होने और विभिन्न अवसरों पर विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण, लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। असल में एक साथ चुनाव का विचार अतीत में भारत के चुनाव आयोग (1982) और विधि आयोग (1999) द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
एक राष्ट्र एक चुनाव – लाभ और हानि (One Nation One Election – Pros and Cons)
भारत में, एक देश एक चुनाव के बारे में मुख्य बातें (पॉइंट)- पक्ष और विपक्ष:
जो इसके पक्ष में हैं: (Pros)
• भारत जैसे बड़े आकार जैसे देश में चुनाव और मतदान कराना बेहद खर्चीला कार्य है लेकिन राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनाव अगर एक साथ आयोजित करने पर यह लागत कम हो सकती है।
• इसके अलावा, एक साथ चुनाव से समय की बचत हो सकती है और सरकार को चुनाव जीतने के बजाय देश के शासन और विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पूरे पांच वर्ष मिल सकते हैं।
• यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई राज्य सरकार विकल्प के बिना न गिरे। लॉ कमीशन ने सिफारिश की कि किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बाद विश्वास प्रस्ताव लाया जाना चाहिए ताकि यदि विपक्ष के पास वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए संख्या नहीं है, तो शासन को हटाया नहीं जा सके।
जो इसके विरोध में हैं: (Cons)
• नए चुनाव नियमों को लागू करने के लिए संविधान के पांच अनुच्छेद और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) में संशोधन करना होगा। देश की हर मान्यता प्राप्त राज्य और राष्ट्रीय पार्टी को इस बदलाव पर सहमति जतानी होगी।
• यदि केंद्र सरकार के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने की शक्ति (अनुच्छेद 356 के तहत) बनी रहेगी, तो वन नेशन वन पोल नियम पात्र नहीं हो सकता है।
• अभी, किसी भी प्रस्ताव में त्रिशंकु विधानसभाओं या सरकारों के समय से पहले विघटन का प्रावधान नहीं किया गया है।
• यह संभव है कि मतदाता राज्य चुनावों के लिए भी राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदान करें, जिससे बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा होगा और क्षेत्रीय पार्टियां हाशिए पर चली जाएंगी।
• इस नियम के तहत किसी एक मुद्दे या व्यक्ति विशेष की लहर शासक को बेलगाम शक्ति दे सकती है।
निष्कर्ष: (‘वन नेशन वन इलेक्शन’ ONOE डिटेल इन हिंदी)
लागत, शासन, प्रशासनिक सुविधा और सामाजिक एकजुटता के दृष्टिकोण से एक साथ चुनाव की आवश्यकता एक अच्छा विचार हो सकता है। एक साथ चुनाव कराने से चुनावी खर्च में कमी आएगी।
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